Saturday, 30 November 2013

Bhule gye sab kuch



शहर की दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
जब यही जीना है दोस्तों तो फिर मरना क्या ?

पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िक्र है.…
भूल गए भींगते हुए टहलना क्या है ?

सीरियल के किरदारों का सारा हाल मालूम है...
पर माँ का हाल पूछने की फुर्सत कहाँ है ?

अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्योँ नहीं?
108 है चैनल फिर भी दिल बहलते क्योँ नहीं ?

इन्टरनेट से दुनिया के टच में तो है
लेकिन पड़ोस में कौन रहता है जानते तक नहीं

मोबाइल, लैंडलाइन, सब की भरमार है.…
लेकिन जिगरी दोस्त तक पहुँचे ऐसे तार कहाँ हैं?

कब डूबते हुए सूरज को देखा था याद है ?
खुली छत में चाँद की चांदनी में बैठना क्या है

तो दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है ?
जब यही जीना है तो फिर मरना क्या है ?

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